पता है , यहाँ से बहुत दूर, गलत और सही के पार, एक मैदान है.. मैं वहां मिलूंगा तुझे…

Galat Aur Sahi Ke Paar

पता है , यहाँ से बहुत दूर, गलत और सही के पार, एक मैदान है.. मैं वहां मिलूंगा तुझे…


गलत और सही के पार.. यह फिल्म रॉकस्टार का एक मशहूर मुकलमाह है. यह दिल को छूने वाला डायलाग, मारूफ शायर रूमी ने १२०० सदी में लिखा था. इस नज़म की आज पूरी दुनिया दीवानी हो गयी है. इंटरनेट और सोशल मीडिया के मुख्तलिफ प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो रही है. आइये इस खूबसूरत नज़म Galat Aur Sahi Ke Paar से ज़रा करीब से रु बा रु होते हैं.

पता है , यहाँ से बहुत दूर, गलत और सही के पार, एक मैदान है.. मैं वहां मिलूंगा तुझे…
तुम, तुमसे मिलना, तुम्हारे बारे में सोचना, सारी दुनिया भर के काम छोड़ कर तुमसे मिलना,
जो कभी नहीं किया, वो करना… सब,
सब गलत है… लेकिन अगर गलत है तो गलत लग क्यूँ नहीं रहा..

कहाँ है ये सही और गलत…? जहां मैं हूँ, वहां से कुछ सफ़ेद या काला नहीं है…
सब कुछ, कई रंगों का है, सब कुछ, हर पल , नया रंग ओढ़ता है..
सब कुछ…. सही भी है, और गलत भी…

मेरी सारी दुनिया ही, उस सही और गलत के पार का मैदान है…
और यहाँ, इस मैदान में, मुझे वो सब लोग मिलते हैं, जो मेरी तरह, सबरंग में देखते हैं..
सब की आँखें ख़राब हैं… दिमाग भी… सब एक जैसे हैं…

फारसी साहित्य के महान लेखक जलालुद्दीन रूमी ने अपनी गजल और कविताओं से जो पहचान बनाई है, उसे मिटा पाना नामुमकिन है। यह महान मुस्लिम कवि, सूफी संत, इस्लामी विद्वान, धर्म विज्ञानी और न्यायवादी थे। वैसे तो इन्होंने हजारों कविताएं और गजलें लिखी हैं। लेकिन सबसे प्रसिद्ध काव्यात्मक‌ कृति मसनवी है।

नज़म के क्रेडिट

नज़म के क्रेडिट

नग़मा निगाररूमी (Rumi)
मौसिक़ारइम्तिआज़ अली
म्यूजिकए आर रेहमान

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Amaan

Amaan

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