तेरी उल्फत में | मोहब्बत, गलतफहमियां, और रिश्तों की उलझनें | क़िस्त 09


Teri Ulfat Main | Rishte Ki Uljhane | Kist 09

मोहब्बत, गलतफहमियां, और रिश्तों की उलझनें, तेरी उल्फत में की क़िस्त 09 हमें मोहब्बत, नाराज़गी, और रिश्तों के नाजुक धागों की खूबसूरत दास्तां सुनाती है। अरसलान की मासूमियत और कशिश की झल्लाहट के बीच रिश्तों की कशमकश है।
न्यूटन की कहानी में मोहब्बत का दर्द और खामोशियों की चीखें झलकती हैं। एक अनजानी मोहब्बत की तड़प और गलतफहमियां उसे एक नई दिशा में ले जाती हैं। यह दास्तान उन रिश्तों का आईना है, जिनमें इमोशन, गलतफहमियां, और माफ़ी की गहराई मौजूद है।

मोहब्बत के सफ़र में हमने यह जाना है,
रास्तों की मुश्किलें ही असली खज़ाना हैं।
दिल की गहराइयों से जब निकला कोई दर्द का गाना,
तभी तो हमें मिला मोहब्बत का बहाना।

मोहब्बत और गलतफहमियों की दस्तक

अरसलान अपनी सीट पे बैठा था। तभी राज और न्यूटन उसके पास आके बैठ गए। “यार न्यूटन, तुमको पता है कि आज कोई शमशेर सर के यहां डिनर पे इनवाइटेड है।” राज ने अरसलान को सुनाते हुए न्यूटन को कहा।

“अच्छा भाई, अब तो लगता है कि शमशेर सर के वहां रेगुलर आना जाना होगा, जनाब का।” न्यूटन ने भी सुनाते हुए कहा।

“तुम सब लोगों का दिमाग खराब हो गया है क्या। यार एक डिनर ही तो है।” अरसलान ने कहा।

“मेरे बच्चे यहीं से शुरुआत होती है। तुम समझ नहीं रहे।” न्यूटन ने बड़े ही सीरियस अंदाज में कहा।

“क्या नहीं समझ रहा मैं?” अरसलान ने पूछा।

“मेरे भाई, शमशेर सर शुरू से ही तुमको मानते हैं। मुझे लग रहा है कि तुममें उनको अपना होने वाला दामाद दिख गया है।” राज ने कहा तो अरसलान बोला “दिमाग फिर गया है तुम सबका।”

राज और न्यूटन हंसते हुए वहां से चले गए।

कुछ देर बाद कशिश अरसलान के पास आई और बोली, “मुझे किसी काम से कॉलेज तक जाना है। वहां एक घंटा लग सकता है। तुम खुद घर आ जाओ।”

“कोई नहीं, कशिश अच्छा ही हुआ, इसी बहाने मुझे फ्रेश होने का टाइम मिल जाएगा। अभी 6 बजा है। आप कॉलेज जा ही रही हो तो, मुझे हॉस्टल छोड़ देना और एक घंटे बाद मुझे पिक कर लेना। तब तक मैं तैयार हो जाउंगा।” अरसलान ने बड़ी ही मासूमियत से कहा।

कशिश का मूड अब और खराब हो गया, कहां वह अरसलान से पीछा छुड़ाने की सोच रही थी, अब उसे लेकर हॉस्टल, फिर घर जाना पड़ेगा।

“कशिश चलिए, आपको कॉलेज में काम भी है, बेकार देर हो जाएगी” अरसलान ने कशिश के ख्यालों को तोड़ा। अब उसे न चाहते हुए भी अरसलान के साथ कॉलेज जाना पड़ रहा था।

कशिश की कार के पास पहुंच कर अरसलान ने कहा “कहां बैठूं?”

कशिश ने झल्ला के कहा “मेरे सर पर बैठो।”

“रियली! पर मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं? “अरसलान ने मासूमियत से कहा तो कशिश ने कहा” “आगे बैठो, पीछे बैठो, जहां दिल करे तुम्हारा। बस मेरा खून ना जलाओ।” अरसलान आगे बैठ गया। तो कशिश ने कार स्टार्ट करी।

“सीट बेल्ट तो लगा लीजिए कशिश। सेफ्टी के लिए।” अरसलान ने कशिश को टोका।

“नहीं लगाती, क्या कर लोगे।” कशिश ने फिर झल्ला के कहा।

अरसलान बोला “मुझे क्या करना, मैं तो आपकी सेफ्टी के लिए कह रहा था। जानती हैं आप, कि रोड पे होने वाले एक्सीडेंट में जो डेथ्स होती हैं, उसमें ज्यादातर डेथ्स का रीज़न सीट बेल्ट ना लगाने से होती है।”

कशिश ने गुस्से से अरसलान को घूरा। फिर उसने ना चाहते हुए सीट बेल्ट लगा ली। फिर बोली “अब खुश हो या कुछ और इश्यू है।”

“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी बात मानी। बड़ी मेहरबानी होगी कि आप मुझ पे गुस्सा न करके ड्राइविंग पे ध्यान दें।” अरसलान ने जवाब दिया।

“मेरा बस चले तो मैं तुमको अभी कार से धक्का दे दूं, पता नहीं पापा ने भी तुमको मेरे सर बांध दिया।” कशिश गुस्से से बोली।

अरसलान सिर्फ मुस्कुराता रहा। फिर कॉलेज आ गया। और कशिश ने अरसलान को हॉस्टल के गेट पे ड्रॉप किया और बोली “जल्दी आना, मैं किसी का इंतजार नहीं करती हूं। मेरा काम शायद जल्द ही खत्म हो जाए।”

“आप परेशान ना होइए, मैं इंतजार नहीं करवाऊंगा।” अरसलान ने उतरते हुए कहा।

गुस्से में छुपी हर नाराज़गी का एहसास है,
हर रिश्ते की गहराई में छुपा विश्वास है।
रिश्तों की पेचीदगियां हमें बताती हैं,
कि दिल के करीब रहने वालों से मोहब्बत का पास है।

सीट बेल्ट की कहानी और रिश्तों का सबक

अब कशिश के पास इंतजार करने के अलावा कोई काम नहीं था। उसे कोई काम था ही नहीं। अब वह क्या करती। पर अब इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं था। इधर अरसलान को अंदाज़ा था कि कशिश को कोई काम नहीं है, इसलिए वह भी जल्दी से तैयार होने लगा। आधे घंटे बाद कशिश से बर्दाश्त नहीं हुआ, तो उसने अरसलान को फोन किया “अरसलान, मेरा काम हो गया है। अब जरा जल्दी बाहर आओ।”

“ओह, मैं आ रहा हूं। बस पांच मिनट में।” अरसलान ने जवाब दिया।

कुछ देर में अरसलान कार में बैठ गया। कशिश ने कार घर के लिए बढ़ा दी।

थोड़े ही आगे एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उनको रोक दिया।

“क्या मुसीबत है, क्यों रोका है?” कशिश ने झल्लाते हुए कहा।

“मैडम गाड़ी से बाहर आइए।” पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा। कशिश बाहर आ गई। साथ में अरसलान भी आ गया।

“आपको पता है मैं कौन हूं। इस तरह आपने मुझे क्यों रोका है।” कशिश गुस्से से बोली।

“आप जो भी हैं, मुझे नहीं मतलब। यह बताइए सीट बेल्ट क्यों नहीं लगाई आपने?” पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा।

कशिश अपनी आदत के मुताबिक सीट बेल्ट लगाना भूल गई थी। पर उसे कभी अपनी गलती माननी तो थी नहीं, वह बोली “हां, तो भूल गए हम, कौन सी बड़ी बात हो गई। तुम जानते नहीं हम कौन है। बहुत पछताओगे, अगर हमको जाने नहीं दिया।”

पुलिस इंस्पेक्टर को गुस्सा आया, वह कुछ बोलता उससे पहले अरसलान बोला “ओह सर गलती हो गई प्लीज माफ कर दीजिए। आगे से कभी ऐसा नहीं होगा।” फिर वह कशिश की तरफ मुखातिब हुआ “कशिश आप सर से माफ़ी मांगिए।”

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या, मैं क्यों मांगू माफ़ी। मैं जा रही हूं।” कशिश ने गुस्से से कहा और कार में बैठने लगी।

पुलिस इंस्पेक्टर का गुस्सा अब सातवें आसमान पे था। उसने कार की ‘की’ निकाल ली और बोला “अब आप जरा रुको, अब तो आपको पुलिस स्टेशन लेके जाउंगा। कुछ ज़्यादा ही बदतमीज हो तुम।”

फिर उसने एक लेडी कांस्टेबल को बुलाया। “ज़रा इन मैडम को जीप में डालो, इनको गुस्सा बहुत आ रहा है। हवालात में ठंडा होगा। एक तो रूल तोड़ती हैं फिर इतनी बदतमीजी!”

हालात बिगड़ने लगे थे, यह देख अरसलान बोला “भाई प्लीज एक मिनट बात कर लिजिए।”

“क्यों, सर को पैसा देगा क्या। जानता नहीं यह कौन है। पैसे देने वालों का तो कीमा बना देते हैं” लेडी कांस्टेबल ने कशिश का हाथ पकड़ते हुए कहा।

“मेरा हाथ छोड़ो वरना बहुत पछताओगे, तुम सब।” कशिश ने गुस्से से अपना हाथ झटकाते हुए कहा।

“नहीं – नहीं ऐसी कोई बात नहीं है बस प्लीज एक मिनट बात सुन लीजिए।” अरसलान ने बड़े सीरियस अंदाज में कहा।

“क्या है बताओ, जल्दी।” पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा तो अरसलान उन दोनों को कशिश से थोड़ा अलग ले के गया, फिर बोला “सर, बात यह है कि वह लड़की थोड़ी बीमार है। इसको दिमागी बीमारी है। पहले यह ठीक थी पर आजकल इसे गुस्सा बहुत आता है। अगर बात ना मानो तो खुद को नुकसान पहुंचाने लगती है। मैंने इसे कहा था सीट बेल्ट के लिए, पर ज़िद पे आ गई। बोली कि अगर सीट बेल्ट लगायी तो यह कार से कूद जाएगी। ”

“कैसी बात कर रहे हो, मतलब यह पागल है क्या।” पुलिस इंस्पेक्टर ने हैरत ​​से कहा।

“नहीं भाई, बस कभी – कभी एकदम से हाइपर हो जाती है। वैसे नॉर्मल रहती है। लेकिन जब अटैक पड़ता है तो जो हाथ में होता है, मार देती है।” अरसलान ने संजीदगी से कहा।

“तो इसका इलाज करवाओ, खुला क्यों छोड़ रखा है?” लेडी कांस्टेबल ने कहा।

“मैडम, इलाज हो रहा है। काफ़ी सुधार है। वह तो शाम को इसने ज़िद की घूमने जाना है, अब मना करना अच्छा नहीं लगता ना। क्या हुआ कि बीमार है, है तो अपनी फ्रेंड ना। प्लीज माफ कर दीजिए और जाने दीजिए हमको।”

“ठीक है, तुम्हारी परेशानी नहीं बढ़ाना चाहता मैं, वैसे ही क्या कम है तुम्हारी लाइफ में। पर जरा ख्याल रखो इसका।” पुलिस इंस्पेक्टर ने अरसलान के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा और कार की ‘की’ उसे दे दी।

“शुक्रिया भाईजान आपका” अरसलान ने मुस्कुराते हुए कहा। फिर वह कशिश के पास पहुंचा। ‘की’ उसे दी और बोला “सीट बेल्ट लगा लो और चलो। वरना ये लोग तुमको आज लेके ही जाएंगे। बहुत मुश्किल से मनाया है।”

कशिश ने भी अरसलान की बात मानना अच्छा समझा। वह पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहती थी। जैसे ही उसने कार स्टार्ट की तो इंस्पेक्टर आया और बोला “इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं होता। वह तो अच्छा है कि तुम्हारा दोस्त सुलझा हुआ इंसान है, वरना!”

कशिश कुछ बोलती उससे पहले ही अरसलान बोला “नहीं सर, अब यह दोबारा ऐसा नहीं करेगी। चलो कशिश हमको देर हो रही है।” कशिश ने अरसलान को घूरा और फिर कार आगे बढ़ा दी।

कुछ देर बाद कशिश ने अरसलान से कहा “वैसे तुमने पुलिस इंस्पेक्टर को हैंडल अच्छा किया।”

अरसलान बोला “हम्म, कुछ खास नहीं, बस हो गया।”

“चलो अच्छा ही है, वह इंस्पेक्टर बच गया। हमको तो बस पुलिस लॉकअप में वक़्त गुजारना पड़ता, ज़ैन के आने तक।” कशिश ने घमंड से कहा।

“ओह, तो आप वहां जो ऊंची आवाज़ में लड़ रही थीं तो ज़ैन के बिना पे। मुझे लगा आप सर का पॉवर दिखा रही हैं।” अरसलान ने कहा।

“ओह, पापा कुछ नहीं कहते, वह तो बहुत रूल्स एंड रेगुलेशन मानने वाले हैं। मुझे लगता है तुमने पापा का रेफरेंस दिया होगा उस इंस्पेक्टर को।” कशिश ने अरसलान से पूछा।

“नहीं, मैं उनका ज़िक्र करके उनको परेशान नहीं करना चाहता था। वैसे भी अगर उन्हें पता चलता तो अच्छा नहीं लगता।” अरसलान ने जवाब दिया।

“ओह, तो ऐसा क्या किया तुमने कि इंस्पेक्टर मान गया!” कशिश ने दरियाफ्त किया।

“छोड़िए, बेकार की बातों को” अरसलान ने टाला।

“अरे तुमने हमको आज परेशानी से बचाया है, अगर चाहो तो इसके एवज कुछ मांग भी सकते हो। हम मना नहीं करेंगे।” कशिश ने फिर गुरूर से कहा।

“हम्म, मैंने जो कहा है उसे सुन के आप मेरा खून करना चाहेंगी।” अरसलान ने मुस्कुरा के कहा।

“हमको समझ जाना चाहिए था कि तुम कुछ घटिया ही करोगे।” कशिश गुस्से में आ गई और अरसलान हंसने लगा।

“अरसलान तुम निहायत ही घटिया इंसान हो। क्या कहा है तुमने उन सबसे।” कशिश ने गुस्से से कहा।

“मैंने सिर्फ सच कहा है।” अरसलान ने मासूमियत से कहा।

“क्या सच बोला” कशिश ने फिर कहा।

“यही कि आपको दिमागी बीमारी है, बात – बात पे गुस्से का दौरा पड़ता है। गुस्से में लोगों को मारने दौड़ती है।” अरसलान ने हंसते हुए कहा।

“क्या, तुम्हारी यह हिम्मत। तुमने मुझको पागल बताया वहां। मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी। खून पी जाउंगी तुम्हारा।” कशिश का गुस्सा सातवें आसमान पे था।

“तो क्या करता, आप इतना सब तो कर ही चुकी थी। जो उस वक्त दिमाग में आया, कहा। शुक्र करिए कि बच गई हैं। वरना अभी पुलिस स्टेशन में होती। और जो आप ज़ैन का दम भर रही हैं ना, वह इंस्पेक्टर उसे भी आपके साथ बंद करता।” अरसलान ने इस बार थोड़ा गुस्से से बोला।

“तुम्हारी यह मजाल कि हमसे ऊंची आवाज में बात करो। तुम समझते क्या हो अपने आपको।” कशिश ने गुस्से से कहा।

“ऐसा है कशिश, आप कार रोकिए, मैं वापस जा रहा हूं, सर से कोई बहाना बना लूंगा। मुझे कोई शौक नहीं है आपके यहां आने का। वह तो सर ने कहा था इसलिए ।” अरसलान ने सीरियस होते हुए कहा।

“ड्रामा ना करो अरसलान। तुम्हारी वजह से हमको आज वैसे ही इतना झेलना पड़ा है। अब अगर तुम नहीं आओगे तो बेकार में पापा हमको ही कहेंगे।” कशिश ने कार की स्पीड बढ़ाते हुए कहा।

कशिश और अरसलान की बातों का अंदाज़,
दिल को छू लेती है मोहब्बत की हर आवाज़।
हमने देखा कि इश्क़ के रास्ते पर,
हर कदम पर मिलता है ज़िंदगी का राज़।

जज़्बातों का इम्तिहान

कुछ देर बाद दोनों जन्नत विला के सामने थे। जन्नत विला, शमशेर ख़ान का घर था ।

शमशेर ख़ान लॉन में ही बैठे थे। “खुशामदीद बरखुरदार, अपना ही घर समझो इसे।”

“शुक्रिया सर, आपका बड़प्पन है जो मुझको इस काबिल समझा।” अरसलान ने बैठते हुए कहा।

“अरे भाई, इंसान अपनी सोच से बड़ा छोटा होता है। और तुम्हारी सोच तो आला है।” शमशेर ख़ान ने अरसलान को समझाया। अरसलान उनकी बात पर सिर्फ मुस्कुराया।

“हां तो भाई क्या लोगे चाय या कॉफी?” शमशेर ख़ान ने अरसलान से पूछा।

“कॉफी सही रहेगी।” अरसलान ने कहा।

“हम्म, ठीक है और क्या लोगे साथ में।” शमशेर ख़ान ने पूछा।

“बस कॉफी सर।” अरसलान ने मुस्कुराते हुए कहा।

“भाई तक्लुफ़ ना करो। तुम तो ज्यादातर हॉस्टल में खाते हो। कभी-कभी मेजर साहब के यहां घर का बना खाते हो। अरे भाई आज तो कुछ घर का खा लो।” यह कहकर शमशेर ख़ान ने अपने नौकर को बुलाया। नौकर के आने पर उससे बोले “शरफू बेटा, जरा बढ़िया सी कॉफी बना लाओ और साथ में गरम – गरम कवाब और फुलकियां।” शरफू रजामंदी से सर हिला के अंदर चला गया।

“हां तो अरसलान, कुछ बताओ अपने बारे में। तुमसे कभी ये सब बातचीत नहीं हुई।” शमशेर ख़ान ने अरसलान से पूछा।

“बस सर, मौका ही कब मिला। मैं लखनऊ से ताल्लुक रखता हूं। हमारा ख़ानदान लखनऊ का है।”

“वाह लखनऊ तो बड़ी उम्दा जगह है।” शमशेर ख़ान ने कहा।

“जी अच्छी जगह है, आज भी असल लखनऊ में आपको अदब और एहतराम मिलेगा।” अरसलान ने कहा।

“फिर यहाँ मुंबई कैसे आना हुआ। सिर्फ स्टडीज ही वजह तो नहीं होगी, लखनऊ तो खुद एक बड़ा शहर है एजुकेशन के लिहाज से।” शमशेर ख़ान ने पूछा।

“जी, असल में मेरे पैरेंट्स की डेथ हो गई थी एक्सीडेंट में। जब मैं बहुत छोटा था। दादाजान और दादीजान ने परवरिश करी। फिर दादीजान का इंतकाल हो गया। फिर दादाजान ने अपने आखिरी वक्त में मुझसे कहा उनके मरने के बाद लखनऊ छोड़ देना। क्योंकी मेरे रिश्तेंदारों को डर था कि कहीं दादाजान सब मेरे ही नाम ना कर डालें। उन्होंने महसूस कर लिया था कि उनके बाद मुझे कोई वहां सुकून नहीं लेने देता। बस मैं उनके इंतेकाल के बाद यहां आ गया।

“अरसलान यह बताकर चुप हो गया। उसकी आंखें नम हो गई थी। शमशेर ख़ान से अरसलान के आंसू छुपे नहीं। वह बोले “ओह, मुझे अफसोस है। और देखो मैंने भी तुम्हारे माज़ी का पूछकर तुमको रूला दिया।”

“अरे नहीं, बस दादाजान और दादीजान याद आ गए थे।” अरसलान ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा।

“वैसे कभी अपने आपको अकेला मत समझना। यहां तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं। मेजर शेखर है। तुम्हारी रूबी आपा हैं। और हम भी तो हैं। क्या हुआ कि तुम्हारे सगों ने तुमसे नाता न रखा। किसी भी रिश्ते में खून से ज़्यादा मोहब्बत मायने रखती है।” शमशेर ख़ान ने अरसलान को दिलासा दिया।

“हां, अल्लाह ने मुझसे एक हाथ से ले के दोनो हाथों से लौटाया है। मुझे तो यहां जितना अपनापन मिला है, उसकी उम्मीद नहीं थी।” अरसलान ने जवाब दिया।

“यह हुई ना बात, शाबाश।” शमशेर ख़ान ने माहौल को बदला। तभी शरफू कॉफी ले के आ गया।

जज़्बातों की दुनिया में कुछ खोया, कुछ पाया,
हर दर्द ने हमें नई राह दिखाया।
मोहब्बत के इम्तिहान में जब दिल ने हार मानी,
तब समझ आया कि ज़िंदगी ने कुछ और कहानी लिखी है।

इश्क़ की अनकही कहानीयाँ

न्यूटन अकेला था आज। सब किसी ना किसी काम में बिजी थे। राज और सिमरन की डेट थी। हिना एक शादी में गई थी सना के साथ। और रोहित को उसके पैरेंट्स ने घर बुला लिया था किसी खास वजह से। रोहित ने जाते हुए कहा था कि वह भी चले पर न्यूटन को सही नहीं लगा, तो उसने बहाना बना दिया। वह आज अकेला महसूस कर रहा था तो उसने सोचा क्यों ना घूम ही लिया जाए।

घूमते हुवे वह मॉल पहुंच गया। सोचा डिनर ही कर लेता हूं। यह सोच वह फूड कोर्ट पहुंचा। और एक टेबल पे बैठ गया अपना ऑर्डर दे के। कुछ देर बाद एक प्यारा सा लड़का उसके पास आया और बोला “हैलो भाई, कैसे हो आप।”

न्यूटन ने मुस्कुरा के जवाब दिया “आई एम गुड, आप कैसे हैं।”

“जी बहुत अच्छा। क्या मैं यहां बैठ सकता हूं। आपके पास।” लड़के ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“हां क्यों नहीं।” न्यूटन ने जवाब दिया।

“थैंक्स भाई। और यह लीजिए यह आपके लिए। आपकी पसंदीदा ब्लैक फॉरेस्ट पेस्ट्री। मुझे भी पसंद है। दो हैं एक आपकी और एक मेरी।” लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ओह, पर आपको कैसे पता कि मुझे यह पसंद है।” न्यूटन ने हैरानी से पूछा।

“इसके लिए आपको यह खानी पड़ेगी पूरी। परेशान ना होइए, कोई गड़बड़ नहीं है, “लड़के ने खाते हुए कहा।

“बेटा, आपकी मम्मी या डैडी ने यह आपको दिलाई होगी। आप खा लो।” न्यूटन कुछ उलझन में आ गया।

“मुझे यह मम्मी पापा ने नहीं दिलाई।” लड़के ने पेस्ट्री खत्म करते हुए कहा।

“फिर किसने दिलाई?” न्यूटन ने पूछा।

“मेरे घर के पास एक दीदी रहती हैं उन्होंने। मैं उनके साथ ही आया था। अब मैं जा रहा हूं।” लड़के ने जाते हुए कहा तो न्यूटन ने पूछा, “अच्छा बेटा आपकी दीदी कहां है, मैं उनको थैंक्स तो कर दूं। क्या नाम है उनका?”

“नाम बताने के लिए मना किया है, और थैंक्स आप उनको फोन पे कर देना, वह आपको कॉल करेंगी अगर आप पेस्ट्री खा लोगे। चलो बाय।”

यह कहकर बच्चा एक तरफ भाग गया। न्यूटन उसे रोकता इससे पहले वेटर उसका ऑर्डर ले आया। इतनी सी देर में लड़का गायब हो गया।

न्यूटन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। वह उलझन में बैठा और सोचने लगा कि आखिर हो क्या रहा है। फिर उसने सोचा कि खाना तो खा ही लेना चाहिए। देर भी हो रही थी। फिर वह अपना सर झटक के खाने में मशगूल हो गया। खाना खत्म करके उसने पेस्ट्री को देखा। दिल नहीं मान रहा था तो उसने सोचा, अब इस बेचारी पेस्ट्री का क्या कसूर है। वेस्ट होने से अच्छा है कि खा ही डालूं। न्यूटन ने पेस्ट्री खत्म करी और फूड कोर्ट से बाहर आ गया।

जब रिश्तों में नाराज़गी का मौसम आया,
दिल ने हर दर्द को बड़ी खूबसूरती से सहलाया।
दिल की ज़ुबान पर मोहब्बत का नाम रहा,
हर गुमशुदा ख्वाब ने खुशियों का जाम बहाया।

इश्क़ के रास्ते और संगदिल फैसले

थोड़ी देर बाद वह हॉस्टल पहुंचा। फिर फ्रेश होकर वह सोने के लिए जैसे ही बेड पे लेटा उसका फोन बजा। अननोन नंबर था। उसने फोन आंसर किया।

“हैलो साहिल, कैसे हैं” दूसरी तरह से आवाज आई। न्यूटन पहचान गया।

“ओह आप हैं। बताइए क्यों कॉल किया इतनी रात में।” साहिल ने जवाब दिया।

“अब आपने मुझे चुड़ैल कहा है तो रात में जागना तो जरूरी है।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“अच्छा तो आप आज किसका शिकार करने निकलीं हैं।” न्यूटन ने कहा।

“है एक संगदिल इंसान, जो मेरी मोहब्बत को समझ नहीं रहा।” दूसरी तरफ से जवाब आया।

“देखिए मुझे लगता है कि आपको मेरा पिछला रवईया पसंद नहीं आया होगा। मैं कुछ ज़्यादा ही बदतमीजी से पेश आया था। उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ। पर प्लीज मुझे सच में प्यार मोहब्बत में कोई दिलचस्पी नहीं है। आप बेकार वक्त खराब कर रही हैं।” न्यूटन ने समझाते हुए कहा।

बड़े रूखे इंसान हैं आप साहिल।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“जी तभी मैं आपसे कह रहा हूं कि आपने गलत शख्स से दिल लगाया है। मैं बदले में आपको प्यार नहीं दे सकता।” न्यूटन ने जवाब दिया।

“वैसे मैंने आपसे यह पूछने के लिए कॉल किया था कि ब्लैक फॉरेस्ट कैसी थी।” दूसरी तरफ से हंसने की आवाज आई।

“ओह तो वह आपकी करामात थी। मुझे पहले ही समझ लेना चाहिए था। वैसे उसके लिए शुक्रिया” साहिल ने कहा।

“ओह ज़रे नसीब हमारे कि आपको हमारा कुछ तो अच्छा लगा।” दूसरी तरफ से जवाब मिला।

“आपको वैसे क्या चाहिए मुझसे। क्यों कर रही है आप ये सब?” न्यूटन ने संजीदगी से पूछा।

“बार-बार एक ही बात पूछते हैं आप। क्यों नहीं मानते कि मुझे आपसे सच में मोहब्बत है। क्या करूं कि आपको यकीन हो जाए कि मैं आपसे सच में मोहब्बत करती हूं।” दूसरी तरह से इस लड़की ने कुछ बुझे-बुझे अंदाज में पूछा।

“देखिए मुझे आपके जज्बे पे कोई शक नहीं है। मैं इन सब बातों से अपने आपको दूर रखना चाहता हूं बस।” न्यूटन ने जवाब दिया।

“क्यों आप इतने खिलाफ हैं मेरी मोहब्बत के, साहिल।” उस लड़की ने पूछा।

“देखिए आप समझ नहीं रही, मैं मोहब्बत में धोखा ​​खा चुका हूं। टूट गया था। मरना चाहता था। बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाला है मैंने।” न्यूटन अपनी बात समझाई।

“आप किसी एक लड़की के मना करने पर यह मान बैठे हैं कि अब आप किसी से मोहब्बत नहीं करेंगे। और अगर कोई आपसे करेगा तो उसकी मोहब्बत भी आपको क़ुबूल नहीं होगी। क्यों आप एक झूठी मोहब्बत के पीछे भागते रहे, जो आपके लायक नहीं थी। उस एक धोखे की वजह से आप अपनी तरफ बढ़ने वाली हर खुशी का कत्ल कर रहे हैं । शायद मुझसे पहले कोई और लड़की भी हो, जिसने आपकी तरफ उम्मीद से हाथ बढ़ाया हो। पर आपने उसकी मोहब्बत का कत्ल कर दिया होगा।”

दूसरी तरफ से आई इस नाराजगी भरी दलील का न्यूटन के पास कोई जवाब नहीं था, हर कोई उसे यही बात समझाता रहता था पर वह किसी की बात नहीं मानता। आज वही सवाल उस लड़की ने भी पूछ लिया।

न्यूटन की चुप्पी पे वह लड़की फिर बोली “साहिल आपको ये हक किसने दिया। आप में और उस लड़की में क्या फर्क है। उसने आपका दिल तोड़ा। आपने भी तोड़ा ही होगा।”

“नहीं तोड़ा मैंने किसी का दिल। कभी भी नहीं तोड़ा। सुन रही हैं आप। क्या जानती हैं आप मेरे बारे में। मुझ पर तोहमत नहीं लगाइए। मैं जनता हूं दिल टूटता है तो कैसा लगता है। और इसलिए मैं दोबारा किसी को मौका नहीं देना चाहता। ना ही किसी का दिल तोड़ना चाहता हूं। तभी आपसे भी यही कह रहा हूं कि मुझसे दूर रहिए।” न्यूटन अंदर से टूट गया था। कुछ चीखते हुए और गुस्से से बोला उसने। फोन को अलग रख दिया उसने और निराश होकर बैठ गया।

फोन से आवाज आई जा रही थी। “साहिल, साहिल आई एम सॉरी। मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं बस आपको समझाना चाह रही थी। प्लीज़ आंसर करिए।”

कुछ देर बाद न्यूटन ने फोन उठाया। वह लड़की अभी भी लाइन पे थी। न्यूटन बोला “देखिए प्लीज मुझे मेरे हाल पे छोड़ दीजिए। इसके बदले क्या चाहती हैं बता दीजिए।”

“माफ़ी चाहते हैं साहिल, मेरी वजह से आपको इतना दुख हुआ। मैं तो बस…. खैर छोड़िए। मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। जो चाहिए वह आप दे नहीं सकते।” उस लड़की ने बेज़ारी से कहा।

“मुझे गलत नहीं समझिए। यही हमारे लिए बेहतर है।” न्यूटन ने कहा।

“मेरे लिए क्या बेहतर है क्या नहीं, यह मैं खुद डिसाइड कर सकती हूं साहिल। वैसे मुझे इस फैसले पे बहुत अफसोस रहेगा कि मैंने जिस इंसान से पहली बार मोहब्बत की वह डरपोक निकला।” इस बार लड़की ने थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहा।

“क्या कहना चाहती हैं आप?” न्यूटन ने गुस्से से पूछा।

“क्या कहना है साहिल। रह क्या गया, खैर आप यही चाहते हैं कि मैं आपकी लाइफ से चली जाऊं। यही सही। मैं अब आपको परेशान नहीं करूंगी। “लड़की ने बेज़ारी से कहा”

“जी शुक्रिया आपका।” न्यूटन ने थोड़ा नर्म लहजे में कहा।

“शुक्रिया कहने की कोई जरूरी नहीं है। मैं आपकी तरह संगदिल नहीं, जो चाहने वालों की कदर नहीं कर सकती। जा रही हूं आपकी जिंदगी से हमेशा-हमेशा के लिए।” इतना कहकर लड़की ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

न्यूटन कुछ कह नहीं सका। उसने अपने आप से पूछा कि क्या उसने यह सही किया। उसे पहली बार लगा कि कहीं उससे कोई गलती तो नहीं हुई। इसी उलझन में था कि तभी उसका फोन फिर से रिंग किया। वही अंजान नंबर था। उसने फोन आंसर किया।

वह कुछ बोलता उससे पहले ही लड़की बोली “मैंने सिर्फ आपको यह बताने के लिए दोबारा फोन किया है कि शायद मैं आपकी तरह बहादुरी से ठुकराए जाने का दर्द ना सहन कर सकूं। इसलिए मैं शायद एक गुनाह करूंगी। पर उसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता ही नहीं रह जाएगा।

हां साहिल मैं खुद को खत्म कर लूंगी अगर मुझे लगेगा कि आपकी मोहब्बत के बगैर मेरी जिंदगी का कोई वजूद नहीं है। बस यही कहना था मुझे। अलविदा साहिल हमेशा के लिए। हो सके तो कभी अपनी अंजान मोहब्बत को प्यार से याद कर लेना जिंदगी में। बस तुम्हारी यादें अपने साथ ले जा रही हूं। अलविदा साहिल अलविदा!” और फोन डिस्कनेक्ट हो गया।

न्यूटन कुछ नहीं कह पाया। अब उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह परेशान हो गया। दिल के किसी कोने से वह अब अफसोस महसूस करने लगा। उसने शायद बहुत बड़ी गलती कर दी थी। उसने उस लड़की को कोई मौका ही नहीं दिया। बस अपनी ज़िद पे अड़ा रहा। उसने कई बार उसे फोन करने की कोशिश की पर फोन स्विच ऑफ था। इसी उलझन में वह बिस्तर पर करवटे बदलने लगा। उसे कब नींद आई पता भी नहीं लगा।

ज़िंदगी की राहों में जब उलझनें बढ़ जाती हैं,
मोहब्बत की बातें ही दिल को राहत दिलाती हैं।
मोहब्बत के दीवाने कभी हार नहीं मानते,
यही तो इश्क़ की सबसे बड़ी कहानी सुनाते हैं।

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Amaan

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