दर-ए-इश्क़: मोहब्बत और खौफ़ की दास्तान

Fear and Love: The Untold Tale of an Lucknow's Old Haveli | दर-ए-इश्क़: मोहब्बत और खौफ़ की दास्तान

लखनऊ की एक पुरानी हवेली का राज़

लखनऊ के पुराने मोहल्ले में एक हवेली थी जिसे लोग “दर-ए-मोहब्बत” कहते थे। इस हवेली की दीवारों पर वक़्त की गर्द जम चुकी थी, लेकिन इसके हर कोने में किसी की इंतजार करती खामोशी गूंजती थी। हवेली की कहानियां लोगों की जुबां पर थीं, लेकिन उस खौफ के साथ जिसे सुनकर रूह कांप जाती थी। कहते थे कि वहां एक रूहसुर्खाब, का साया है, जो अपनी अधूरी मोहब्बत के दर्द में कैद है।

आशेर, एक होशियार और जुनूनी नौजवान, देहली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के बाद छुट्टियों में लखनऊ आया। बचपन से वह पुरानी इमारतों और उनकी कहानियों से मोहब्बत करता था। उसे हमेशा यकीन था कि हर दास्तान के पीछे एक सच्चाई होती है। हवेली के बारे में सुनकर, उसका दिल बेचैन हो गया।

“आशेर, इस हवेली से दूर रहो। ये कोई आम जगह नहीं है।”
उसके दोस्त यूसुफ़ ने समझाने की कोशिश की।
“डर और सच के बीच का फासला बस हिम्मत है, यूसुफ़। मैं इसे देखना चाहता हूं।”
यूसुफ़ ने मना किया, लेकिन आशेर ने ठान लिया कि वह हवेली के अंदर जाएगा।

चांदनी रात थी, जब आशेर और यूसुफ़ हवेली के पास पहुंचे। हवेली के बड़े, जर्जर गेट पर कुरान की आयतें और यह इबारत लिखी थी:

यूसुफ़ कांपते हुए बोला, “यहां कुछ अजीब है। मुझे वापस जाना है।”
लेकिन आशेर ने गेट को धक्का दिया। ठंडी हवा का एक झोंका उनकी तरफ बढ़ा, जैसे हवेली ने उन्हें अंदर बुला लिया हो। यूसुफ़ ने घबराते हुए कदम पीछे खींचे, लेकिन आशेर अंदर चला गया।

एक पुरानी हवेली का राज़ और आशेर की पहली दस्तक

हवेली के अंदर का माहौल जैसे किसी पुरानी किताब का जिंदा सफा था। फर्श के टूटे हुए टुकड़ों पर हर कदम गूंजता हुआ महसूस हो रहा था। झाड़-फानूस, जो कभी रोशनी का बेजोड़ नमूना रहा होगा, अब एक गहरी उदासी से झूल रहा था। हर कोने से एक अजीब-सा सन्नाटा फूट रहा था, मानो दीवारों ने किसी अधूरी कहानी को अपने अंदर कैद कर लिया हो।

हवा में एक महक थी, जो नाज़ुक गुलाबों की खुशबू और जलते हुए राख की खुसबू का अजीब खलत (मिश्रण) थी। यह खुसबू दिल को खींचती थी, लेकिन साथ ही रूह को डराती भी थी।

आशेर ने अपनी टॉर्च की रोशनी से चारों तरफ देखा। अचानक, उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसे पुकारा।

“आशेर…”
उसकी आवाज़ रुक गई। वह ठिठक कर खड़ा हो गया। यह पुकार इतनी कोमल, इतनी मोहक थी कि उसने पलटकर देखे बिना ही महसूस किया कि यह सिर्फ एक आवाज़ नहीं थी।

“कौन है?” उसने आवाज़ देते हुए पूछा।

यूसुफ़, जो डर से कांप रहा था, ने उसके बाजू को पकड़कर कहा, “चलो, वापस चलते हैं। यह जगह सही नहीं लगती।”
“नहीं, यूसुफ़,” आशेर ने धीरे से कहा। “यह जगह मुझे पुकार रही है। मैं देखना चाहता हूँ कि यहां क्या है।”

सुर्खाब की वह पहली झलक

अचानक, सामने की सीढ़ियों पर एक परछाईं उभरी। टॉर्च की रोशनी जैसे ही उस पर पड़ी, वह धीरे-धीरे साफ हो गई। वह एक लड़की थी। सफेद लिबास में लिपटी, मानो खुद चांदनी उसे ओढ़ा दी गई हो। उसके लंबे काले बाल उसकी पीठ पर बहते पानी की तरह लहरा रहे थे, और उसकी आंखें… उसकी आंखें ऐसी थीं जैसे उनमें किसी अनसुने दर्द की नदी बह रही हो।

आशेर ने घबराते हुए पूछा, “तुम कौन हो?”

उसने अपने होंठों पर हल्की मुस्कान लाते हुए कहा, “मैं सुर्खाब हूँ। ये हवेली मेरी है। पर तुम यहां क्यों आए हो?”

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जो सीधे दिल में उतर गया। यह आवाज़ न तो सख्त थी, न ही पूरी तरह नरम। यह मोहब्बत और खौफ का एक अजीब मिश्रण थी। सुर्खाब कि मुस्कान में कुछ ऐसा था जो आशेर को अपनी ओर खींच रहा था। यूसुफ़ ने आशेर को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसका ज़ोर न चला ।

"तेरी आंखों में डूबने की ख्वाहिश है,
मोहब्बत के समंदर का तू किनारा है।
ये दिल समझे तुझे ख्वाब की तरह,
पर तेरी हकीकत खौफ़ से भरा है।"

“मैंने सुना था कि यह जगह खौफनाक है। लेकिन मुझे डर नहीं लगता। मैं सच्चाई देखना चाहता था।”
“सच्चाई?” सुर्खाब मुस्कुराई। “सच्चाई हमेशा इतनी आसान नहीं होती। लेकिन अगर तुम इसे देखना चाहते हो, तो आओ।”

यूसुफ़ ने तुरंत आशेर का हाथ पकड़ लिया। “नहीं, आशेर! यह ठीक नहीं है। हमें यहां से जाना चाहिए।”
लेकिन इससे पहले कि यूसुफ़ उसे खींच पाता, सुर्खाब ने अपने हाथ से इशारा किया। यूसुफ़ के कदम जड़ हो गए, मानो किसी पोशीदह ताकत ने उसे एक पत्थर बना दिया हो।

“तुम मेरे मेहमान हो,” सुर्खाब ने आशेर से कहा। “लेकिन मेरे करीब आने की कोशिश मत करना। और हाँ, सच्चाई अक्सर खौफनाक होती है। क्या तुम इसे सहने के लिए तैयार हो?”

आशेर उसकी मुस्कान में कैद हो गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह मोहब्बत का असर था या किसी रहस्यमय ताकत का।

“मैं सच्चाई से भागने वालों में से नहीं हूँ,” आशेर ने कहा।

“काफी वक़्त के बाद किसी आदमज़ात में इतनी हिम्मत देखीं हैं मैंने, वरना यहाँ कितने आये और कितने गए, मुझे तो याद भी नहीं। ख़ैर.. अगर तुम इसे देखना चाहते हो, तो आओ,” सुर्खाब ने कहा, और अपनी उंगलियों के हल्के इशारे से सीढ़ियों की ओर इशारा किया।

गुलाब और राख का सच

सुर्खाब आगे बढ़ी, उसका सफेद लिबास सीढ़ियों के अंधेरे में चमकता हुआ महसूस हो रहा था। आशेर ने देखा कि उसकी चाल में एक अजीब-सी रवानगी थी, मानो वह ज़मीन पर नहीं चल रही हो।

सीढ़ियों से नीचे उतरते ही माहौल और ठंडा हो गया। फर्श पर जमी धूल की मोटी परत के बावजूद, उनके कदमों की आवाज़ गूंज रही थी। चारों तरफ अंधेरा घना हो रहा था, और दीवारों पर अजीब तसवीरें बन रही थीं, जो कभी इंसान की शक्ल लगतीं और कभी धुंआ बनकर गायब हो जातीं।

“यह जगह कैसी है?” आशेर ने डरते हुए पूछा।
“यह मेरी मोहब्बत की कब्र है,” सुर्खाब ने बिना पीछे देखे कहा। उसकी आवाज़ गहरी और उदास थी।

“मोहब्बत की कब्र?”
“हाँ, वह मोहब्बत जिसने मुझे इस हालत में पहुंचा दिया। जिसने मुझे इंसान से रूह बना दिया।”

कमरे के एक कोने में एक छोटा, पुराना झूला था। उस पर गुलाब की सूखी पंखुड़ियां और राख बिखरी हुई थी। सुर्खाब उसके पास जाकर बैठ गई।

“यह वही जगह है जहां मैं अपनी जिंदगी के सबसे हसीन सपने देखती थी। लेकिन अब, यह मेरे सबसे बड़े दर्द का गवाह है।”

आशेर उसके पास आया। “तुम्हारा दर्द क्या है, सुर्खाब? क्यों यह हवेली तुम्हारी मोहब्बत और दर्द की गवाह बनी है?”

सुर्खाब ने उसकी आंखों में देखा। “यह जानने के लिए तुम्हें मुझे समझना होगा। और अगर तुम मुझे समझ पाए, तो शायद मेरी रूह को आज़ादी मिल जाए। लेकिन याद रखना, यह आसान नहीं होगा। तुम्हारे हर सवाल का जवाब खौफ और मोहब्बत के बीच उलझा हुआ है। क्या तुम तैयार हो?”

आशेर ने अपने दिल में उठते डर को दबाया। “मैं तैयार हूँ।”

आशेर का बढ़ता खिंचाव और हवेली के गहरे राज़

हवेली की गहराई में बढ़ते हुए हर कदम के साथ, आशेर के दिल और दिमाग पर एक अनजाना असर हो रहा था। दीवारों पर जमी धूल में जैसे वक्त की उदासी दर्ज थी। हवा में गुलाब और राख की वह अजीब गंध अब और गहरी हो गई थी, जैसे यह सिर्फ खुशबू नहीं, बल्कि एक अधूरी कहानी का हिस्सा हो।

सुर्खाब, जिसने सफेद लिबास में मानो चांदनी को ओढ़ रखा था, अपने हल्के कदमों से आगे बढ़ रही थी। उसकी आवाज़ में वह गहराई थी जो दिल को चीरकर रूह तक उतर जाती है।

“यह हवेली मेरी मोहब्बत की कब्रगाह है, आशेर,” उसने धीमे लहजे में कहा।
“कब्रगाह?” आशेर ने रुककर पूछा। उसकी आवाज़ में बेचैनी थी।
“हाँ,” सुर्खाब ने ठंडी सांस भरते हुए जवाब दिया। “मैंने किसी इंसान से मोहब्बत की थी। बेइंतहा मोहब्बत। वह मेरी जिंदगी का मकसद बन गया था। लेकिन उसने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए।”

आशेर ने देखा कि उसकी आंखों में दर्द की गहराई थी। वह दर्द जिसे कोई दुनिया का इंसान समझ नहीं सकता था।
“उसने तुम्हारे साथ ऐसा क्या किया, सुर्खाब?”
“उसने मुझसे झूठे वादे किए। कहा कि वह मुझसे शादी करेगा, लेकिन वह लौटकर कभी नहीं आया।”

उसकी आवाज़ कांपने लगी। “और फिर, उसने दूसरी औरत से निकाह कर लिया। वह मेरी मोहब्बत को मुझसे छीनकर चला गया। मेरे दिल में जलती मोहब्बत की आग ने मुझे रूह में बदल दिया। अब मैं इंसान नहीं रही, बस एक रूह बनकर रह गई।”

आशेर को सुर्खाब की बातें सुनकर अजीब सा खिंचाव महसूस हुआ। वह जानता था कि यह मोहब्बत सिर्फ किसी कहानी की बात नहीं थी, बल्कि यह दर्द, खौफ और मोहब्बत का वह जाल था जिसमें वह खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहा था।

“शायद वह इंसान तुम्हारे लायक नहीं था, सुर्खाब। लेकिन अब मैं यहाँ हूँ। मैं तुम्हारे दर्द को महसूस कर सकता हूँ।”
सुर्खाब ने उसे पहली बार मोहब्बत भरी नज़र से देखा। उसकी उदासी से भरी आंखों में हल्की चमक आई। उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान उभरी, लेकिन वह मुस्कान अधूरी थी।
“क्या तुम सच में मेरे दर्द को समझ सकते हो, आशेर? अगर हाँ, तो तुम्हें मेरी मोहब्बत का इम्तिहान देना होगा।”

आशेर ने सुर्खाब से कहा “बताओ, मुझे किस इम्तेहान का सामना करना पड़ेगा। तुम्हरे लिए में वह करूँगा ।”

सुर्खाब ने कहा आशेर “अभी वक़्त नहीं आया है, बस तुमको कुछ दिन यहाँ रोज़ आना होगा।”

आशेर ने कहा “क्यों आज और अभी क्यों नहीं?”

इसपर सुर्खाब ने मुस्कुराते हुवे कहा ” एक बार यह दिल टूट चूका है आशेर, इस दिल में बरसों का दर्द है और उस धोके के ज़ख़्म हैं। एक मुलाक़ात में कैसे भर पाएंगे यह ज़ख्म।

अगले कुछ दिनों में, आशेर बार-बार हवेली आने लगा। उसे अब वहां डर नहीं लगता था। उसकी मुलाकातें सुर्खाब से लंबी होती गईं। सुर्खाब हर रोज़ हवेली के नए कोने की कहानी सुनाती। हर दीवार, हर दरवाजा, हर कमरा जैसे किसी अधूरी मोहब्बत का गवाह था।

"मैंने इश्क़ किया, पर सिला क्या पाया?
मोहब्बत के बदले बस दर्द कमाया।
अब रूह की परछाईं हूँ,
किसी के ख्वाबों की परतें हूँ।"

“यह जगह मेरी यादों का मकबरा है,” सुर्खाब ने एक दिन कहा।
“लेकिन तुम इतनी उदास क्यों हो, सुर्खाब? अब तो मैं तुम्हारे साथ हूँ।” आशेर ने उसके पास बैठते हुए कहा।
सुर्खाब ने गहरी सांस भरी। “मोहब्बत का धोखा दिल में ऐसा जख्म छोड़ता है, जो शायद कभी नहीं भरता। मैं अब भी उसी का इंतजार कर रही हूँ। लेकिन शायद… शायद तुम्हारी मौजूदगी मुझे एक नई उम्मीद दे रही है।”

आशेर खुद को रोक नहीं पा रहा था। उसके दिल में सुर्खाब के लिए जज्बात पैदा हो रहे थे। वह सुर्खाब को देखकर सोचता, “क्या कोई इतना खूबसूरत होते हुए भी इतना उदास हो सकता है?”
लेकिन इन जज्बातों के साथ एक डर भी था। वह यूसुफ़ की चेतावनियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता था।

“भाई,” यूसुफ़ ने एक दिन गुस्से में कहा, “तुम उस लड़की के जादू में फंस चुके हो। ये मोहब्बत नहीं है। ये पागलपन है! वो तुम्हें मौत के मुंह में ले जा रही है।”
“यूसुफ़, तुम नहीं समझोगे। ये मोहब्बत है। यह सच्ची है।”
“सच्ची मोहब्बत?” यूसुफ़ ने हंसते हुए कहा। “यह लड़की इंसान नहीं है! वह तुम्हारे जज्बातों का इस्तेमाल कर रही है।”

लेकिन आशेर ने यूसुफ़ की बातों पर ध्यान नहीं दिया।

एक रात, हवेली के अंदर जब हवाएं तेज़ हो रही थीं और दीवारें जैसे कराह रही थीं, सुर्खाब ने आशेर से कहा,
“आशेर, तुम मुझे आज़ाद कर सकते हो। लेकिन यह आसान नहीं होगा। तुम्हें अपने दिल की सच्चाई साबित करनी होगी।”
“कैसे?”
“तुम्हें मेरे माज़ी के खौफ का सामना करना होगा। मेरी रूह का एक टुकड़ा अब भी इस हवेली में कैद है। उसे पाने के लिए तुम्हें सबसे बड़ी सच्चाई और सबसे बड़े खौफ का सामना करना होगा।”

“मैं तुम्हारे लिए सब कुछ करूंगा, सुर्खाब।” आशेर ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा।
“लेकिन याद रखना,” सुर्खाब ने धीरे से कहा, “यह सिर्फ तुम्हारी मोहब्बत का इम्तिहान नहीं है। यह तुम्हारी रूह का भी इम्तिहान है।”

आशेर अब एक ऐसे सफर पर था, जहां मोहब्बत और खौफ का खेल और गहरा होने वाला था। हवेली के अंदर का हर कोना, हर दीवार और हर परछाई उसके इम्तिहान का हिस्सा बनने को तैयार थी। लेकिन क्या वह इस खौफ को पार कर पाएगा? और क्या उसकी मोहब्बत सुर्खाब को उस कैद से आज़ाद कर सकेगी, जो माज़ी के जख्मों ने उसे दी थी?

मोहब्बत का इम्तिहान! मोहब्बत में जीना भी है, मर जाना भी है

उस रात, हवेली में अजीब हलचल थी। दीवारों पर खून की लकीरें उभर रही थीं, और हवेली की फिजा में किसी की कराहें गूंज रही थीं। हवेली की दीवारें उस रात जैसे सांस ले रही थीं। हर कोना एक जिंदा कहानी सुनाने को बेताब था। दीवारों से अजीब आवाज़ें आने लगीं, और कमरे में अंधेरा और ठंडक बढ़ गई। सुर्खाब ने आशेर से कहा, “अगर तुम मुझे सच्चे दिल से चाहते हो, तो मुझे आज़ाद करो। मेरी रूह इस कैद से निकलना चाहती है। लेकिन इसके लिए तुम्हें अपनी जान दांव पर लगानी होगी।”

सुर्खाब की मोहब्बत में आशेर ने फैसला कर लिया। उसने सुर्खाब से कहा, “अगर मेरी ज़िन्दगी तुम्हें सुकून दे सकती है, तो मैं इसके लिए तैयार हूँ।”

सुर्खाब आशेर को एक कमरे में ले गयी। कमरे के बीचों-बीच खड़ा आशेर, अपनी धड़कनों की गूंज साफ़ सुन सकता था। उसके सामने ज़मीन पर रखा एक पुराना, अजीब शीशा चमक रहा था, जिस पर धुंधली परछाइयां थिरक रही थीं। सुर्खाब का चेहरा गंभीर था, लेकिन उसकी आंखों में मोहब्बत का समंदर लहरें मार रहा था।

“आशेर,” उसने गहरी आवाज़ में कहा, “यह शीशा सिर्फ़ सच्चाई दिखाता है। जो इसमें देखता है, वह अपने अक्स के पीछे छुपी हर हकीकत को देखता है। अगर तुम्हारी मोहब्बत सच्ची है, तो यह शीशा तुम्हें कुर्बानी का रास्ता दिखाएगा। लेकिन यह इम्तिहान आसान नहीं होगा। सोच लो, क्या तुम तैयार हो?”

आशेर ने एक पल को ठहरी हुई हवेली की फिजा में खुद को ढूंढा। उसका दिल बेचैन था, लेकिन उसकी मोहब्बत ने उसकी बेचैनी पर काबू पा लिया।
“सुर्खाब, मेरी मोहब्बत पर शक मत करो। मैं इस इम्तिहान के लिए तैयार हूँ।”

सुर्खाब मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान के पीछे उदासी का साया था। “तो फिर शीशे में देखो, और जानो कि मोहब्बत की राह में हर कदम मौत के करीब ले जाता है।”

आशेर ने कांपते हुए शीशे को अपने हाथों में उठाया। जैसे ही उसने उसमें झांका, शीशे की सतह पर धुंध सी छा गई। वह धीरे-धीरे साफ होने लगी, और उसमें वह खुद को देख सकता था। लेकिन यह सिर्फ़ उसका अक्स नहीं था। शीशे में उसके पीछे सुर्खाब खड़ी थी। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन उसके होंठ मुस्कुरा रहे थे।

“ये क्या है?” आशेर ने हैरानी से पूछा।
सुर्खाब ने गहरी सांस ली। “यह मेरी मोहब्बत की आखिरी तस्वीर है। जिस इंसान से मैंने मोहब्बत की थी, उसने मुझसे यहीं इस शीशे के सामने मुझे अकेला छोड़ा था और मुझे धोखा दिया। इसी कमरे में मैं सिसकते हुवे खत्म हो गयी और मेरी रूह इस शीशे में समां गयी। उसने मुझे इस शीशे में कैद छोड़ दिया। और जब तक कोई सच्ची मोहब्बत से इस शीशे को कुर्बानी नहीं देता, मेरी रूह कभी आज़ाद नहीं होगी।”

शीशे में अचानक एक जलता हुआ मंजर उभरने लगा। हवेली की दीवारें जल रही थीं। चीखें और कराहें हवा में गूंजने लगीं। आशेर ने देखा कि सुर्खाब एक आग के घेरे में खड़ी थी।

“अगर मैं तुम्हें बचाने की कोशिश करता, तो क्या मैं मर जाऊंगा?” आशेर ने पूछा।
“मोहब्बत में मौत नहीं होती, आशेर। बस रूह का एक नया सफर शुरू होता है। लेकिन इस सफर की कीमत खून है। अगर तुम मुझे चाहते हो, तो अपनी रगों से बहते खून की बूंदें इस शीशे पर गिरानी होंगी।”

यूसुफ़ ने कमरे के कोने से चिल्लाते हुए कहा, “आशेर! मत करो ये! ये तुम्हें धोखा दे रही है। ये मोहब्बत नहीं, ये मौत है!”
लेकिन आशेर ने यूसुफ़ की तरफ नहीं देखा, और उसकी आवाज़ जैसे हवेली की गूंज में खो गई। आशेर नजरें सुर्खाब पर थीं।
“सुर्खाब, तुमने अपनी मोहब्बत में धोखा सहा है। लेकिन मैं तुम्हारे लिए वफादार रहूंगा। अगर मेरी जान तुम्हें आज़ाद कर सकती है, तो ये जान तुम्हारी है।”

आशेर ने अपने हाथ में एक कांच का टुकड़ा उठाया। “रुको!” सुर्खाब ने चीखते हुए कहा। “सोच लो, ये सिर्फ़ मेरी रूह की आज़ादी नहीं है। ये तुम्हारी रूह को भी मुझसे बांध देगा। क्या तुम इसे समझते हो?”
“मोहब्बत सिर्फ आज़ादी नहीं, बंधन भी है, सुर्खाब। और अगर ये बंधन तुम्हारे साथ है, तो मैं इसे खुशी से कुबूल करता हूँ।”

आशेर ने अपनी कलाई पर कांच का टुकड़ा फेर दिया। खून की गर्म बूंदें शीशे पर गिरीं। उसी पल, हवेली की दीवारें कांपने लगीं। झूमर टूटकर गिर पड़े, और हवा में एक जोरदार चीख गूंज उठी।

शीशे से धुंआ उठने लगा, और सुर्खाब की रूह धीरे-धीरे रोशनी में बदलने लगी। उसका चेहरा अब सुकून और मोहब्बत से दमक रहा था।

जैसे ही सुर्खाब की रूह आज़ाद हुई, उसने आशेर के पास जाकर कहा, “तुमने मुझे आज़ाद कर दिया, लेकिन अब मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकती। तुमने अपनी रूह से मुझे बांध लिया है। अब मैं तुम्हारे साथ हमेशा रहूंगी।”

आशेर के हाथों से शीशा गिर पड़ा। वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गया। यूसुफ़ ने उसे खींचकर हवेली से बाहर निकाला।

जब आशेर ने अपनी आंखें खोलीं, तो उसने एक चमकदार रौशनी को अपने अंदर दाखिल होते हुए देखा। वह रौशनी सुर्खाब की रूह थी जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी थी। वह उसे हर वक्त महसूस कर सकता था। उसकी आवाज़, उसकी मौजूदगी, और उसकी मोहब्बत – सब कुछ उसकी रूह में समा चुका था। इश्क़ जब रूह में उतर जाए, तो उसकी गहराई में खौफ़ भी मोहब्बत जैसा ही खूबसूरत लगने लगता है।

पर क्या मोहब्बत हर दहशत को जीत सकती है? क्या यह मोहब्बत का अंजाम था? या फिर ये सिर्फ़ एक नई दास्तान की शुरुआत है? नहीं, इश्क़ और कुर्बानी का यह सफर अभी खत्म नहीं हुआ… यह सफर तो अभी और आगे जाने वाला था। आशेर की यह कुर्बानी इस किस्से का आखिर नहीं था।

"मोहब्बत में जीना भी है, मर जाना भी है,
हर इश्क़ का मुकाम दीवाना भी है।
तेरे लिए रूह तक की कुर्बानी दूँ,
ये इश्क़ का वादा है, अफ़साना भी है।"

जंग-ए-ज़िन्दगी!

आशेर अब हवेली से तो बाहर आ चुका था, लेकिन हवेली की सिहरन और सुर्खाब की मौजूदगी उसके दिल और रूह में गहराई तक उतर चुकी थी। हर रात जब वह सोने की कोशिश करता, उसकी बंद आंखों के सामने सुर्खाब का चेहरा तैरने लगता। उसकी आवाज़ उसकी सांसों में गूंजती, और कहती

"तुम्हारी मोहब्बत ने मुझे बचा तो लिया, लेकिन तुम्हारी रूह ने हवेली को नहीं छोड़ा। जब तक तुम इसे नहीं समझोगे, हमारी मोहब्बत अधूरी रहेगी।"

यूसुफ़, जो अब आशेर के साथ था, इस बदलाव से परेशान था।
“आशेर, मैं तुम्हें वापस उस जिंदगी में देखना चाहता हूँ, जो तुम्हारी थी। ये हवेली, ये रूह और ये मोहब्बत – ये सब तुम्हारे लिए नहीं है।”

लेकिन आशेर का जवाब हमेशा वही होता:
“यूसुफ़, मोहब्बत का रास्ता इतना आसान नहीं होता। जब दिल से आवाज़ आती है, तो इंसान किसी भी मंज़िल की परवाह नहीं करता।”

युसूफ परेशां था पर वह क्या कर सकता था।

आशेर तो अपनी दुनियाँ में मशगूल था, वह खुद से सवाल करता:

"क्या मैंने अपनी मोहब्बत को आज़ाद किया, या खुद को उसकी कैद में डाल दिया?"

आशेर की जिंदगी अब एक नई जंग थी। वह मोहब्बत और हवेली के रहस्य के बीच फंसा था। क्या वह सुर्खाब को हमेशा के लिए अपना बना पाएगा या हवेली का शाप उसके प्यार की राह में फिर से खड़ा होगा?

इश्क़ का आखिरी इम्तिहान

एक रात, जब आशेर अपने कमरे में था, तो उसने महसूस किया कि हवा में वही पुरानी गुलाब और राख की महक फिर से घुलने लगी है। उसके कमरे के कोने में लगी दीवार पर एक परछाई उभरी। वह परछाई धीरे-धीरे एक चेहरा और फिर एक ज़हूर (आकृति) में बदल गई। यह सुर्खाब थी।

“तुम्हारी रूह से जुड़कर भी मैं पूरी तरह आज़ाद नहीं हुई, आशेर,” सुर्खाब ने गहरी, उदास आवाज़ में कहा।
उस दर्द को आशेर ने महसूस किया। वह बोला सुर्खाब “मैंने तो अपनी जान की बाज़ी लगाई थी। अब और क्या करना होगा, जिससे तुम्हारा दर्द ख़तम हो जाये और तुम आज़ाद हो जाओ। में तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ सुर्खाब। ”

सुर्खाब ने खामोशी से उसके करीब आते हुए कहा, “तुमने कुर्बानी तो दी, लेकिन मोहब्बत को अधूरा छोड़ दिया। मोहब्बत सिर्फ अपनी रूह देने का नाम नहीं है; ये दोनों रूहों का एक-दूसरे में समा जाना है।”

आशेर ने सवालिया नजरों से पूछा, ” पर उस रात मैंने तुमको अपने अंदर समाते हुवे महसूस किया था!”

सुर्खाब ने कहा “आशेर, अभी एक और जंग बाक़ी है, पर वह जंग आसान नहीं है।”

आशेर बोला “सुर्खाब, मेरी मोहब्बत पर शक मत करो। मैं इस इम्तिहान के लिए भी तैयार हूँ।”

सुर्खाब ने आशेर को हवेली की एक और कहानी सुनाई, जो उसने पहले कभी नहीं बताई थी।
“इस हवेली का एक ऐसा हिस्सा है, जहां मेरी रूह का आखिरी टुकड़ा कैद है। वह हिस्सा अभी भी मेरे पुराने वादों और उस इंसान की बेवफाई का गवाह है। जब तक वह टुकड़ा आज़ाद नहीं होता, मैं पूरी तरह तुम्हारी नहीं हो सकती।”

आशेर के दिल में हलचल मच गई। वह समझ गया कि हवेली के और अंदर जाना होगा। वह जगह खतरों से खाली नहीं थी।
“क्या मुझे उस जगह जाना होगा?”
“हाँ,” सुर्खाब ने कहा, “लेकिन इस बार तुम अकेले नहीं होगे। मेरी मोहब्बत तुम्हारे साथ होगी। लेकिन याद रखना, वहाँ जो भी देखोगे, वो तुम्हें डराएगा। तुम्हें अपने दिल और इरादे को मजबूत रखना होगा।”

अगली रात, आशेर और यूसुफ़ फिर से हवेली पहुंचे। यूसुफ़ ने अपनी नाखुशी ज़ाहिर की।
“मैं तुम्हारे साथ हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि ये सही नहीं है। यह जगह हमें खत्म कर सकती है।”
आशेर ने उसे भरोसा दिलाया। “यूसुफ़, अगर यह मोहब्बत की आखिरी मंज़िल है, तो मैं इसके लिए कुछ भी करूँगा।”

जैसे ही वे हवेली में दाखिल हुए, अंदर का माहौल पहले से भी ज्यादा डरावना था। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें थीं, जिनके चेहरे धुंधले हो चुके थे। एक गहरी आवाज़ गूंज रही थी, जैसे कोई अजनबी उनकी मौजूदगी को महसूस कर रहा हो।

हवेली के अंदर का वह हिस्सा, जहां सुर्खाब ने अपनी रूह का टुकड़ा कैद बताया था, एक छिपे हुए तहखाने में था। दरवाजा बंद था, और उस पर कुछ लिखा हुआ था: “इश्क़ के आखिरी इम्तिहान के लिए तैयार हो जाओ।”

आशेर ने दरवाजे को खोला, और एक अंधेरी, सर्पीली सीढ़ी उनके सामने थी। हर कदम के साथ माहौल भारी होता जा रहा था। यूसुफ़ ने पीछे मुड़कर जाना चाहा, लेकिन आशेर ने उसे रोक लिया।

तहखाने की गहराइयों में अंधेरा और सन्नाटा घना होता जा रहा था। कमरे के बीचोबीच लाल रोशनी से चमकता क्रिस्टल, सुर्खाब की रूह का आखिरी टुकड़ा, ठहराव के बावजूद भयानक बेचैनी का एहसास करा रहा था। आशेर ने अपने कदम आगे बढ़ाए, लेकिन उसके हर कदम पर जमीन जैसे कांप रही थी। यूसुफ़ ने घबराते हुए पीछे हटने की कोशिश की।

“आशेर, यह जगह मौत की दावत है। हमें यहां से निकल जाना चाहिए!” यूसुफ़ ने घबराते हुए कहा।
“नहीं, यूसुफ़। मैं यहां से बिना सुर्खाब को आज़ाद किए नहीं जाऊंगा।”

जैसे ही आशेर क्रिस्टल के पास पहुंचा, अचानक पूरे कमरे में अंधेरा फैल गया। दीवारों से सर्द हवा के झोंके आने लगे, और एक गहरी, घुमड़ती हुई हंसी गूंजी।

“तुमने मेरी कैद तोड़ने की कोशिश की, और अब तुम इसकी सज़ा भुगतोगे!”

यह परछाई सुर्खाब की पुरानी मोहब्बत की रूह थी, जिसने उसे धोखा दिया था। परछाई धुएं जैसी गहरी थी, लेकिन उसकी आंखें लाल अंगारे की तरह चमक रही थीं।

“तुम कौन हो?” आशेर ने गुस्से और डर के मिश्रण के साथ पूछा।
“मैं वह हूँ जिसने सुर्खाब को प्यार का झूठा सपना दिखाया। मैंने उसे छोड़ दिया, और अब उसकी रूह मेरी कैद है। तुम जैसे मामूली इंसान इसे मुझसे छीनने की हिम्मत कैसे कर सकते हो?”

अचानक परछाई ने कमरे में चारों तरफ फैलते हुए हमला किया। हवाएं इतनी तेज़ हो गईं कि फर्श दरकने लगा। आशेर ने पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन परछाई ने उसे अपनी जगह पर जकड़ लिया।

यूसुफ़ ने हिम्मत जुटाकर कुरान की आयतें पढ़नी शुरू कीं। लेकिन परछाई ने उसके चारों ओर एक धुएं का घेरा बना दिया।
“तुम्हारी ये आयतें मुझ पर असर नहीं करेंगी। मैं डर और नफरत से बना हूँ। मुझे हराने के लिए तुम्हारे पास उससे कहीं ज्यादा ताकत होनी चाहिए।”

आशेर को अचानक याद आया कि मौलवी साहब ने उसे क्या सिखाया था।

“अगर तुम उस हवेली में जाओ, तो ये आयतें हमेशा पढ़ना। ये तुम्हारी हिफाज़त करेंगी। लेकिन याद रखना, तुम्हारे दिल में डर नहीं होना चाहिए। डर, शैतान की सबसे बड़ी ताकत है।”

आशेर ने अपने दिल को मजबूत किया और गहरी सांस लेकर आयतें पढ़नी शुरू कीं।

परछाई ने चीखते हुए आशेर पर धावा बोला। धुएं की तेज लपटें आशेर के चारों ओर घूमने लगीं। वह उसे नीचे गिराने की कोशिश कर रही थी।
“तुम मुझसे नहीं बच सकते! सुर्खाब की रूह मेरी है, और हमेशा मेरी रहेगी!”

आशेर ने अपनी पूरी ताकत जुटाई और आयतों को जोर से पढ़ता रहा। हर बार जब वह एक आयत पढ़ता, परछाई थोड़ा पीछे हटती।
लेकिन फिर परछाई ने चाल बदली। उसने हवा में सुर्खाब का चेहरा दिखाया। वह रो रही थी, और मदद की गुहार लगा रही थी। “आशेर, मुझे बचाओ! यह परछाई मुझे निगल रही है।”

आशेर का दिल पसीज गया।

“मोहब्बत सिर्फ़ अल्फ़ाज़ों से नहीं होती, आशेर,” परछाई गहरी हंसी के साथ बोली। “तुम इसे बचाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन तुम्हारे अंदर हिम्मत नहीं है। तुम मेरी तरह इसे छोड़कर भाग जाओगे।”

रूह और मोहब्बत मोहब्बत की नई शुरुआत

आशेर ने खुद को शांत किया। उसने अपनी जेब से वह तावीज़ निकाली, जो मौलवी साहब ने उसे दी थी। तावीज़ को अपने हाथ में लेकर उसने परछाई की ओर देखा। उसको मौलवी साहब की बात याद थी की अगर उसके दिल में ज़रा भी शुबहा हुई तो इस तावीज़ की ताक़त से वह भी मर सकता है। पर आशेर को अपनी मोहब्बत पे यकीन था।
आशेर ने कहा “तुमने सुर्खाब के साथ धोखा किया। लेकिन मैं अपनी मोहब्बत पर कुर्बान हो जाऊंगा। तुम मेरे इरादे को तोड़ नहीं सकते!”

उसने तावीज़ को उठाकर परछाई की तरफ फेंका। जैसे ही तावीज़ परछाई से टकराई, एक ज़ोरदार चमक फैल गई। परछाई ने चीख मारते हुए अपने आकार को खोना शुरू कर दिया। हवाएं तेज़ हो गईं, लेकिन आयतों और तावीज़ की ताकत ने उसे कमजोर कर दिया।

परछाई ने अपने आखिरी शब्दों में कहा, “यह जंग अभी खत्म नहीं हुई, इंसान। मोहब्बत और नफरत के बीच जंग हमेशा चलती रहेगी।” और फिर वह धुएं में विलीन हो गई।

जैसे ही परछाई गायब हुई, कमरे की लाल रोशनी फीकी पड़ने लगी। क्रिस्टल टूटकर रोशनी के हजारों टुकड़ों में बदल गया। उसी रोशनी में सुर्खाब की रूह प्रकट हुई।

वह अब शांत और खूबसूरत थी। उसने आशेर की ओर देखा और कहा, “तुमने अपनी मोहब्बत से मुझे आज़ाद कर दिया। मैं हमेशा तुम्हारे इस एहसान को याद रखूंगी। लेकिन मेरी रूह अब तुम्हारी रूह से बंध चुकी है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, आशेर। हमेशा के लिए।”

तहखाना धीरे-धीरे गिरने लगा। यूसुफ़ ने आशेर को खींचकर बाहर निकाला। हवेली से बाहर आते ही, वह उसकी हद से दूर भागे, एक धमाका हुवा और वे दोनों जमीन पर गिर पड़े। पीछे मुड़कर देखा, तो पूरी हवेली धूल में बदल चुकी थी। पर अब सब कुछ सही था। जो उस जगह के मनहूसियत थी वह ख़तम हो गयी थी। चारो तरफ सुकून और ताज़गी थी। आशेर के दिल पर अब कोई बोझ नहीं था। उसके दिल में अब भी सुर्खाब की मौजूदगी का एहसास था। वह उसकी रूह का हिस्सा बन चुकी थी।
“अब क्या होगा, आशेर?” यूसुफ़ ने थकी हुई आवाज़ में पूछा।
आशेर हस्ते हुवे बोला “पता नहीं भाई, पर लगता है ये मोहब्बत की नई शुरुआत है।”

मोहब्बत और कुर्बानी की इस कहानी में, सच्चे इश्क़ ने हर खौफ को मात दी। लेकिन हर मोहब्बत अपने साथ नए इम्तिहान लाती है।

Ꮲata hai, yahan se bahut door, Galat aur sahi ke paar ek maidan hai.. Ꮇain wahan milunga tujhe

Galat Aur Sahi Ke Paar

Amaan

Amaan

Leave a Reply